कभी तो पत्थरों में जान आएगी इस आस में बैठा वो पत्थर इक दिन समा गया जमीन में कुछ सौ साल बाद ढुंढकर इतिहास बनने गलती तो उसी की थी भला पत्थरों में भी कभी जान आती है?
No comments:
Post a Comment